Saturday, December 12, 2009

मंजिल

इस चकाचैंध भरे जग में
पथ ही हमको मंजिल लगता है
हम अल्प बुद्धि हैं इसीलिए वह
मृगतृष्णा सा हमको छलता है ।
मित्रों से यदि हम पूछें तो
वे नित नया लक्ष्य दिखलाते हैं
आसानी से हो हासिल तुमको
पा संतोष करो, समझाते हैं ।
पर मेरी ऐसी अभिलाषा है
मैं अद्भुत कोई काम करूँ
सुख पाए जिससे मानवता
और मैं भी जग में नाम करूँ ।
मैंने गुरूजन से प्रश्न किया
निज शंका का माँगा समाधान
बोले,चहुँदिशि फैला है कपटझूठ
मानव-मानव में होता घमासान ।
धरती पर फैले समकल शांति
तुम ऐसा कार्य महान करो
मंजिल को अपनी पहचानो
फिर उसकी ओर प्रयाण करो ।
----- भवेश भास्कर सोनी

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