Sunday, December 13, 2009

सीनियर-जूनियर

कालेज में वार्षिकोत्सव की डेट तय हो गई है । प्रोग्राम तय करने के लिए व्यूह रचा जाने लगा है । एक सीनियर ग्रुप को प्रोग्राम-लिस्ट बनाने का जिम्मा सौंपा गया । प्रथम वर्ष का छात्र लोकेश भी अपनी अभिनय कला दिखाने के लिए एक नाटक ढूँढ लाया । सीनियर्स उसे नाटक की बजाय कोई अन्य छोटा-सा आइटम करने की सलाह देते हैं, किन्तु लोकेश में तो यही एक हुनर था । बचपन से ही वह अपने कस्बे के एकमात्र रामलीला मंच पर छोटा-मोटा पार्ट अदा करता रहा है । आज अपने कालेज के मंच पर कुछ करने का मौका वह खोना नहीं चाहता है । उसने बस एकबार नाटक की कुछ झलकियां देखने का अनुरोध किया । शायद यूं ही दिल रखने के लिए सीनियर्स ने कह दिया कि चलो दिखाओ । लोकेश ने कुछ डायलोग बोलकर एक्टिंग की तो सीनियर्स देखते रह गए । एक-दो दिन में लोकेश ने लगभग प्रत्येक पात्र का अभिनय करके उन्हें दिखा दिया । सीनियर खुश थे, लोकेश भी । लोकेश पिछले दो दिनों से हीरो की-सी फीलिंग लिए अपनी माँ, बहन, भाई, दोस्तों को बताता घूम रहा था कि वह नाटक में भाग लेने जा रहा है । सभी को उसका नाटक और एक्टिंग बहुत पसन्द आई है । तीसरे दिन अपने सीनियर्स का सब कुछ बदला बदला-सा महसूस करने के बाद उसने पाया कि उसका पूरा नाटक हथिया लिया गया है । लोकेश को एक रोल तक नहीं दिया गया है । सीनियर्स उस नाटक को खुद प्ले करने वाले थे, उसका पत्ता साफ कर दिया गया है । दिल में सन्नाटा भरे लोकेश को समझ ही नहीं आया कि क्या हो गया और अब क्या करें ? कभी अनजाने अपराध-बोध की शर्मिन्दगी, कभी सीनियर्स के प्रति आक्रोश, कभी व्यथा भरी बैचेनी जैसे भाव-भरे लोकेश के कदम अपने कमरे में बिस्तर तक आकर रुक गए । वह हाथों में सिर लिए आँखों के रस्ते सब कुछ बहा देने के अलावा कुछ नहीं कर सका ।

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