Monday, December 7, 2009

प्राथमिक कक्षाओं में हिन्दी भाषा उच्चारण की समस्या

क्रियात्मक शोध का सारांश

भाषा पहले बोलचाल में आती है फिर उसका लिखित स्वरूप बनता है । जब वह लिपिबद्ध होती है तो उसका प्रचलित रूप उच्चारण-वर्तनी का आधार बनता है । शुद्ध लेखन तथा प्रभावी अभिव्यक्ति भाषा के शुद्ध उच्चारण पर निर्भर करती है । भारत के विस्तृत भौगालिक क्षेत्र में बोली जाने वाली हिन्दी भाषा का उच्चारण क्षेत्रीय बोली तथा अन्यान्य कारणों से प्रभावित होता है फलतः शुद्ध उच्चारण की समस्या उत्पन्न हो जाती है । यह देखा गया है कि भाषा के शुद्ध उच्चारण के प्रति लोग प्रायः विशेष ध्यान भी नहीं देते हैं ।--

भाषा शिक्षण के प्राथमिक स्तर पर ध्यान दिया जाए तो इसके तात्कालिक एवं दूरगामी परिणाम अच्छे हो सकते हैं । इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उच्चारण सम्बन्धी अशुद्धियों को चिह्नित कर उनका वर्गीकरण करना तथा अशुद्धियाँ करने के कारणों को जानना और उनके सुधार हेतु उपाय प्रस्तुत के लिए प्रस्तुत क्रियात्मक शोध कार्य सम्पन्न किया गया ।--

प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थी हिन्दी भाषा के बहुत से शब्दों का अशुद्ध उच्चारण करते हैं। यदि उन्हें शुद्ध उच्चारण का अभ्यास करवाया जाए तो इस समस्या का निराकरण हो सकता है । इसी शोघ-परिकल्पना पर आधारित इस शोध में दो शालाओं के 60 छात्रों का न्यादर्श लेते हुए उनकी पूर्व जाँच की गई । पूर्व जाँच के माध्यम् से अशुद्धियों की स्थिति तथा उनके कारणों को चिह्नित किया गया । फिर विद्यार्थियों को शब्दों के शुद्ध उच्चारण का अभ्यास करवाया गया तथा न्यादर्श में से 10 विद्यार्थियों की पुनः परीक्षा ली गई । पूर्व जाँच एवं पश्च जाँच में क्रमशः 140 तथा 30 शब्दों को शामिल किया गया । ये प्राथमिक कक्षाओं की हिन्दी विषय की पाठ्य पुस्तकों में प्रयुक्त तथा साधरणतया दैनिक जीवन में काम में आने शब्द वाले थे ।----

पूर्व परख के अनुसार विद्यार्थी 49।92 प्रतिशत शब्दों का ही उच्चारण शुद्ध कर पाए किन्तु अभ्यास के बाद यह प्रतिशत 70।71 हो गया जो शोध परिकल्पना को सत्यापित करता है।---

अध्ययन के दौरान पाया गया कि विद्यार्थी मुख्यतः रेफ, मात्रा, अनुस्वार, अनुनासिकता, विसर्ग, संयुक्त व्यंजन, अक्षर विपर्यय, श ष एवं स के उच्चारण सम्बन्धी अशुद्धियाँ अधिक करते हैं । वे उच्चारण नियमों की जानकारी का अभाव, स्थानीय बोली एवं अन्य भाषाओं के प्रभाव, श्रुति दोष, लापरवाही, मुख-सुख, उच्चारण स्थानों की जानकारी की कमी आदि कारणों से ये अशुद्धियाँ करते हैं ।---

विद्यार्थियों को उच्चारण नियमों की जानकारी देना, उन्हें शुद्ध उच्चारण हेतु जाग्रत एवं प्रेरित करना, निरन्तर अभ्यास, उच्चारण के समय शब्दार्थ बताना आदि प्रयासों से यह समस्या दूर हो सकती है ।--- शुद्ध उच्चारण नियमों में स्वरों तथा व्यंजनों के प्रकार, उनके उच्चारण स्थान, उच्चारण के समय जिह्वा तथा अन्य अवयवों की स्थिति, उच्चारण के आधार आदि की जानकारी दी जानी चाहिए । मुख्य रूप से ह्रस्व एवं दीर्घ मात्रा, अनुस्वार, अनुनासिकता, कण्ठ्य, तालव्य, मूर्द्धन्य, ओष्ठ्य, वस्त्र्य, दन्त्य, दन्तोष्ठ्य ध्वनियाँ, श्वास की मात्रा, उच्चारण अवयवों में परस्पर स्पर्श एवं घर्षण, संयुक्त व्यंजन, विसर्ग की जानकारी देना उपयोगी रहेगा ।----

शिक्षण की वार्षिक योजना बनाते समय कक्षा विशेष की पाठ्य पुस्तकों में प्रयुक्त तथा दैनिक जीवन में प्रयोग में आने वाले शब्दों की सूची तैयार कर सत्र के प्रारम्भ में ही विद्यार्थियों को ऐसे शब्दों का शु़द्ध उच्चारण बताया जाए और बाद में उनका अभ्यास एवं अनुवर्तन होता रहे तो अशुद्ध उच्चारण की समस्या से बचा जा सकता है ।

बहुकक्षा शिक्षण व्यवस्था का अध्ययन

क्रियात्मक शोध का सारांश

शिक्षकों,छात्रों तथा अधिकारियों से एकत्रित जानकारी को सारणीबद्ध कर समंकों का विश्लेषणकरने पर प्राप्त निष्कर्षों के संदर्भ में बहुकक्षा शिक्षण व्यवस्था की स्थिति में शिक्षण को प्रभावी बनाने तथा छात्रों के शिक्षण अधिगम स्तर को उन्नत करने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं: ---------------संस्था प्रधानों तथा शिक्षकों के लिए सुझाव.................................................................................... 1विभागीय निर्देशानुसार प्रार्थना सभा का प्रभावी आयोजन किया जाना चाहिए । प्रार्थना सभा में प्रार्थना, राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत, प्रतिज्ञा के अलावा समाचार वाचन,बोध कथा, प्रेरणास्पद दोहे, मौन प्रार्थना आदि को भी अनिवार्यरूप से शामिल किया जाना चाहिए । इसके अतिरिक्त निम्न नवाचार भी छात्रों को शैक्षिक सम्बलन प्रदान करेंगे -------------------------------------------------------------------------- (i) प्रार्थना सभा में छात्रों को अकारादिक्रम में खड़े होने के निर्देश दे सकते हैं। छात्र स्वतःकभी कक्षावार,कभी समूहवार तो कभी शाला के सभी छात्र अकारादिक्रम से खड़े होंगे तो वर्णमाला के क्रम को सीख सकेंगे ।(कक्षा 1 एवं 2 के छात्रों के लिए उपयोगी) (ii) ऊँचाई के अनुसार छोटे से बड़े अथवा बड़े से छोटे के क्रम में खड़े होने से छात्रों में गणितीय कौशल का विकास होगा (iii) कक्षा उपस्थिति रजिस्टर के क्रमाक अथवा शाला के समस्त छात्रों को क्रमांक आवंटित कर छात्रों को सम-विषम संख्या, 3,5,7,11,13,17,29,23,29,31 आदि से भाज्य संख्या के क्रम में अलग- अलग पंक्तियाँ बनाकर खड़ा होने के निर्देश दिए जा सकते हैं । क्रमांक के आधार पर आरोही-अवरोही क्रम में खड़ा किया जा सकता है । होने का एक बड़ा कारण कक्षा 1 एव 2 को साथ-साथ बैठाना अथवा बड़ी कक्षा के साथ कक्षा 1 और/अथवा 2 के छात्रों को बैठाना है । इस व्यवस्था में बड़ी कक्षाओं के छात्रों पर ध्यान केन्द्रित रहता है जिससे कक्षा 1 एवं 2 के अधिगम नहीं कर पाते हैं ।बड़ी कक्षा के छात्रों का स्तर निम्न होने का एक कारण यह भी है कि गत वर्षों में जब वे निम्न कक्षाओं में थे, उन पर ध्यान नहीं दिया जा सका । 4। समूह अथवा कक्षा को निम्न बातों का ध्यान रखकर शिक्षण कार्य करवाया जा सकता है - (i) प्रत्येक वर्ग/कक्षा तक शिक्षक की पहुँच सुनिश्चित हो सके, (ii) एक वर्ग/कक्षा के कार्य से दूसरा वर्ग/कक्षा का कार्य बाधित नहीं होना चाहिए, (iii)मानीटर व्यवस्था का उपयोग । बहुकक्षा/वर्ग मे शिक्षण की निम्न प्रकार से योजना बनाई जा सकती है - वर्ग/कक्षा-समूह समय-विभाजन एवं कार्य 20 मिनट 20 मिनट 20 मिनट 1। शिक्षण कार्य स्वकार्य अभ्यास कार्य 2. स्वकार्य अभ्यास कार्य शिक्षण कार्य 3. अभ्यास कार्य शिक्षण कार्य स्वकार्य परिस्थितियों को दृष्टिगत आवश्यकतानुसार समय को कम-अधिक किया जा सकता है । 5. कक्षा/वर्ग की बैठक व्यवस्था निम्नानुसार करते हुए शिक्षण कार्य करवाया जा सकता है तथा शिक्षकों द्वारा जाँच कार्य आवश्यकरूप से होना चाहिए । समूह कक्षा समूह कक्षा 1 1 4 2 2 1 5 2 3 1 7 4 6 3 8 5 अध्यापकों की संख्या दो से अधिक होने पर तीन कक्षा कक्षों में छात्रों को बैठाने पर नए रूप में समूह का गटन किया जा सकता है । 6. शिक्षण, स्वकार्य एवं अभ्यास कार्य के समय समूह के सम्मुख पर्याप्त शिक्षण अधिगम सामग्री होनी चाहिए। अतः बहुकक्षा समूह/वर्ग को ध्यान में रखकर ही शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करना चाहिए । सार्थक शिक्षण अधिगम सामग्री का कक्षा कक्ष में अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए 7. सत्रारम्भ में ही शिक्षण की वार्षिक योजना तैयार कर लेनी चाहिए तथा उसी के अनुसार शिक्षण का नियोजन करना चाहिए । 8. कक्षा/समूह में उच्च शिक्षण उपलब्धिस्तर के विद्यार्थी को माॅनीटर बनाकर स्वकार्य एवं अभ्यास कार्य के समय छात्रों के सहयोग हेतु तैयार करना चाहिए । स्वकार्य एवं अभ्यास कार्य की रूपरेखा माॅनीटर को पहले ही बता देनी चाहिए । 9. प्रभावी एवं आनन्ददायी शिक्षण के लिए शिक्षण विधि के रूप में खेल विधि, कहानी विधि, प्रदर्शन विधि, संश्लेषण-विश्लेषण विधि, ज्ञात से अज्ञात विधि आदिका अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए। 10. प्रत्येक इकाई/उप इकाई के शिक्षण के अन्त में प्रत्येक बालक का मूल्यांकन किया जाना चाहिए तथा मूल्यांकन के दौरान कमजोर पाए जाने वाले छात्रों के लिए उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए । मूल्यांकन के सम्बन्ध में अभिलेख भी संधारित किया जाना चाहिए । 11. शालाओं में रेडियो प्रसारण का उपयोग करना चाहिए । 12. खेल क्रियाएँ, कहानी बनाना, पहेलियाँ, वार्ता, नाटक, अभिनय, सुलेख, श्रुतलेख, अनुलेख, गीत, प्रश्नोत्तरी, चित्र बनाना, अन्त्याक्षरी, वस्तु संग्रह, सहजता एवं सृजनात्मकता की गतिविधियाँ, पर्व-उत्सव आदि का आयोजन नियमित रूप से होना चाहिए तथा उनमें भाग लेने वाले छात्रों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । 13. पुस्तकालय का समुचित उपयोग होना चाहिए । 14. अभ्यास पुस्तिका के रूप में तैयार पाठ्यपुस्तकों के अभ्यास संबंधी रिक्त स्थानों की छात्रों द्वारा पूर्ति 15. छात्रों को पर्याप्त मात्रा में कक्षा एवं गृहकार्य दिया जाना चाहिए । 16. मातृ शिक्षक परिषद में शिक्षित तथा शिक्षा-विस्तार में रूचिशील महिलाओं को शामिल करना चाहिए इन महिलाओं को शिक्षण कार्य में सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ......................................................................................................................विभाग के लिए सुझाव ---------------------------------------------------------------------------------1. पर्याप्त संख्या में शिक्षकों का पदस्थापन करना चाहिए । 2. शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में कम से कम लगाना चाहिए । 3. समय-समय पर अन्य विभागों, यथा- चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, साक्षरता, कृषि, सहकारिता, बाल विकास, बैंक, पाोस्ट आॅफिस, रोड़वेज,समाज कल्याण आदि के प्रतिनिधियों द्वारा उपयोगी जानकारी देने के लिए उनकी शाला में उपस्थिति के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए । ................................................................................................................................................................ सर्व शिक्षा अभियान के लिए सुझाव ---------------------------------------------------------------1. अभिनवन एवं विषयगत प्रशिक्षण शिविरों में बहुकक्षा/वर्ग को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य करवाया जाना चाहिए । 2. प्र0अ0 एवं शिक्षक मासिक बैठकों में बहुकक्षा/वर्ग शिक्षण के संदर्भ में अधिकाधिक विचार-विमर्श करना चाहिए । 3. प्रशिक्षण शिविरों तथा मासिक बैठकों में बहुकक्षा शिक्षण को दृष्टिगत रखते हुए सार्थक शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करवाया जाना चाहिए । 4. बहुकक्षा शिक्षण व्यवस्था में शिक्षण से सम्बन्धित साहित्य शालाओं को उपलब्ध करवाना चाहिए।