Friday, December 11, 2009

परवाज पर पहरा

हँसती, खेलती, नाचती, गाती,
मस्ती छाई संग मस्तानी टोली ।
क्या दुनिया, क्या दुनियादारी,
अठखेली करती एक लड़की ।
रंगीन कोई उड़ती तितली या पंख फैलाए बुलबुल-सी ।
कल-कल बहती नदियां या हो उमंग पगी हिरणी-सी ।
हठात् उठी नजर, एक सजीला खड़ा उधर,
ताके जाने, कब से , तीर लगा जैसे दिल पर,
ठिठकी, सिमटी, भागी घर के अन्दर
पल में बदला सब कुछ, बाहर-भीतर,
अब तो छूटा छुटपन, चुपके-से, जाने कब आई जवानी ।
देहरी हो गई लक्ष्मण रेखा, सुनती कितनी नई कहानी ।