Sunday, December 6, 2009

ईनाम का दंश

विद्यालय टोपर बनकर माधव बहुत खुश था । सन साइन क्लब वालों ने उसका नाम पुरस्कार लिस्ट में लिख लिया होगा । उसका सहपाठी अनुराग पूरे वर्ष हेमन्त सर की ट्युशन करके भी उससे पीछे रह गया था । उसने दूसरा स्थान प्राप्त किया था जबकि माधव बिना किसी ट्युशन के प्रथम स्थान पर था । आस-पड़ौस भी अंचभित था कि यह कैसे हो गया । प्रशंसा भरी निहागों से माधव फूल-सा खिल उठा था। पड़ौसी आण्टी अपने बेटे को चुपके-चुपके लताड़ रही थी । इसी पड़ौसी का हट्टा-कट्टा लड़का जब माधव को दो मुक्के मार कर भाग गया था, उसका बदला माधव ने आज ले लिया था ।
लिखाई-पढाई से महरूप माधव की माँ बताया करती थी कि कैसे उसके पिताजी कई कोस चलकर पढने जाया करते थे । इन्टर की परीक्षा में प्रथम स्थान लाने हैडमास्टर ने दादाजी को बुलाकर उनके गले में रुपयों की माला डाली थी । सारा गांव तभी से माधव के पिताजी रामप्रसाद को भावी अफसर के रूप में देखने लगा था । आज इन्हीं रामप्रसादजी के बेटे ने प्रथम स्थान लाकर खून का असर दिखाया है । मां-पिताजी बेटे की ऊँची उड़ान के साथ उड़े चले जा रहे थे ।
माधव और रामप्रसादजी विद्यालय में आयोजित सम्मान समारोह में पहुँच चुके थे । अपनी बारी की प्रतीक्षा में बेटा माधव उस समय ठगा-सा रह गया जब स्टेज से सैकण्डरी परीक्षा में प्रथम स्थान पर अनुराग का नाम लिया गया । यह कैसा न्याय ? प्रथम स्थान के माक्र्स ही हटा दिये गए थे । द्वितीय स्थान को प्रथम स्थान पर घोषित कर दिया गया था । हकबकाए रामप्रसादजी के दमकते उत्साह पर बर्फ की बौछार हो गई । अपने जमाने की सच्चाई आज कुटिल नीति के आगे धूल चाटती नजर आ रही थी । माधव अपने पैरों पर तन का बोझा ढोये हुए घर आया । घर-भर की नजरों के सामने सिर झुकाये वह बैठ गया । उसके दिल में एक कील ठुक गई । दूसरे दिन रामप्रसादजी माधव की माक्सशीट लेकर क्लब गए । क्लब वालों ने विद्यालय द्वारा सौंपी गई पुरस्कृत विद्यार्थियों की लिस्ट दिखा दी । शेष पड़ी ट्राफी देकर उन्होंने क्षमा मांग ली । घर आकर रामप्रसादजी ने माधव के सिर पर हाथ फेर कर व ट्राफी पकड़ा दी किन्तु माधव का दिमाग कुटिल गलियों में मुड़ चुका था जिसका अन्त सिर्फ अन्धरी गुफा ही था ।

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